वास्तु जाने और सीखे भाग ३ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

वास्तु जाने और सीखे - भाग ३ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

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वास्तु जाने और सीखे भाग ३ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 
वास्तु जाने और सीखे - भाग ३ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

कोलकाता : सूत जी ऋषियों से बताते है की निर्माण में भूमि की परीक्षा करनी ही चाहिए। हर ज़मीन हर वर्ण के लिए सही नहीं होती है।  आज हमारा विषय है भूमि की परीक्षा। 

ब्राह्मण, छत्रिय , शूद्र और वैश्य सबके अपने कार्य है और कार्य शैली है और जीवन में उर्जाओ की जरुरत इन सब को अलग अलग प्रकार की होती है। हर वर्ण के अनुरूप ज़मीन का चयन आवश्यक है। 

पूर्वं भूमिं परीक्षेत पश्चाद्वास्तुं प्रकल्पयेत् । श्वेता रक्ता तथा पीता कृष्णा चैवानुपूर्वशः ॥ ११

 
अर्थात - पहले जमीन की जांच करनी चाहिए और फिर इमारत की डिजाइन तैयार करनी चाहिए। इसी क्रम में सफेद, लाल, पीले और काले रंगों की पृथ्वी का चयन किया गया। ११   
यहाँ चार रंगो की धरती से तात्पर्य है की चार वर्णो के अनुरूप चार प्रकार की ज़मीन लेवे। 

विप्रादः शस्यते भूमिरतः कार्यं परीक्षणम् । विप्राणां मधुरास्वादा कटुका क्षत्रियस्य तु ॥ १२

अर्थात - ज़मीन के स्वाद की परीक्षा लेने की सलाह दी जाती है। ब्राह्मणों के लिए इसका स्वाद मीठा बताया गया है।  क्षत्रियों के लिए कड़वा बताया गया है १२  

तिक्ता कषाया च तथा वैश्यशूद्रेषु शस्यते । अरत्निमात्रे वै गर्ते स्वनुलिप्ते च सर्वशः ॥ १३ 

अर्थात - वैश्यों  के लिए कड़वा और  तीखा होता शुद्रो के लिए । तत्पश्चात् भूमिकी पुनः परीक्षा के लिये एक हाथ गहरा गड्ढा खोदे ।  १३  

घृतमामशरावस्थं कृत्वा वर्त्तिचतुष्टयम् । ज्वालयेद् भूपरीक्षार्थं तत्पूर्णं सर्वदिङ्मुखम् ॥ १४ 

अर्थात - गड्ढा को सब ओर से भलीभाँति लीप-पोतकर स्वच्छ कर दे। फिर एक कच्चे पुरवेमें घी भरकर उसमें चार बत्तियाँ जला दे और उसे उसी गड्ढेमें रख दे।

उन बत्तियोंकी लौ क्रमशः चारों दिशाओं की ओर हों।तीर के सिरों पर घी लगाकर चार प्यालों में रखिये। भूमि को परखने के लिए सभी दिशाओं की ओर मुख करके उसमें आग लगा देनी चाहिए। १४  

दीप्तौ पूर्वादि गृह्णीयाद् वर्णानामनुपूर्वशः । वास्तुः सामूहिको नाम दीप्यते सर्वतस्तु यः ॥ १५

अर्थात -यदि पूर्व दिशा की बत्ती अधिक काल तक जलती रहे तो ब्राह्मण के लिये उसका फल शुभ होता है। इसी प्रकार क्रमशः उत्तर, पश्चिम और दक्षिणकी बत्तियोंको क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रोंके लिये कल्याणकारक समझना चाहिये।

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