क्या लिखा है भविष्यपुराण में संकष्ट श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के विषय में -जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा

क्या लिखा है भविष्यपुराण में संकष्ट श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के विषय में -जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा

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क्या लिखा है भविष्यपुराण में संकष्ट श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के विषय में -जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा
क्या लिखा है भविष्यपुराण में संकष्ट श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के विषय में -जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा

गणेश चतुर्थीत प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को किया जाता है, लेकिन माघ, श्रावण, मार्गशीर्ष और भाद्रपद में इस व्रत के करने का विशेष माहात्म्य है। इस वर्ष १० जनवरी को मनाया जायेगा संकष्ट श्रीगणेश चतुर्थी व्रत। इस दिन गणेश जी की पूजा होती है। 

माहात्म्य : भविष्यपुराण में ऐसा कहा गया है कि जब-जब मनुष्यों को बड़ा भारी कष्ट प्राप्त हो, वे संकटों और मुसीबतों से घिरा महसूस करें या निकट भविष्य में किसी अनिष्ट की आशंका हो, तो उस समय संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने से विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन, पुत्रार्थी को और रोगी को आरोग्य की प्राप्ति होती है। 

महाराजा युधिष्ठिर इस व्रत का क्या फल मिला 

महाराज युधिष्ठिर ने इस व्रत के प्रभाव से युद्ध में वैरियों को मारकर अपना राज्य पा लिया था। 

बालि ने क्यों किया था ये व्रत  

जब रावण को बालि ने बांध लिया था, तब उसने इसी व्रत को करके भगवान् गणेशजी की कृपा से अपना राज्य फिर पा लिया था। 

सीता को खोजने में क्या इस व्रत ने की थी हनुमान की सहायता 

हा,इसी व्रत के प्रभाव से हनुमान ने सीता का पता लगाया था। 

शिव ने , पारवती ने, दमयंती ने और इंद्रा ने क्यों किया था ये व्रत

त्रिपुर को मारने के लिए शिवजी ने इस व्रत को किया था। दमयंती ने इसी व्रत को करके अपने पति राजा नल का पता पाया था। तीनों लोकों की विभूति चाहने वाले इंद्र ने इसी व्रत को अपनाया था। पार्वती ने शिवजी को पतिरूप में इसी व्रत के प्रभाव से पाया।

पूजन विधि

शंकल्प करने की विधि :

दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, गंध और जल लेकर संकल्प करें कि अमुक मास, अमुक पक्ष और अमुक तिथि में विद्या, धन, पुत्र, पौत्र प्राप्ति, समस्त रोगों से मुक्ति और समस्त संकटों से छुटकारे के लिए श्रीगणेशजी की प्रसन्नता के लिए में संकष्ट चतुर्थी का व्रत करता हूँ। 

इसको पढ़ें :

मम वर्तमानागामि-सकल संकट निवारणपूर्वक सकल अभीष्ट सिद्धये संकटचतुर्थी व्रतमहं करिष्ये । 

अर्थात - मैं अपनी सभी वर्तमान और भविष्य की विपत्तियों को दूर करके अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए संकट चतुर्थी व्रत का पालन करूंगा।

इस संकल्प के बाद दिन भर उपवास रखकर व्रत करे। फिर सामर्थ्यानुसार गणेशजी की मूर्ति लाये, कलश स्थापित करें। गजानन भगवान् का चिंतन करते हुए उनका आह्वान करें। फिर गणेशजी का धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली आदि से षोडशोपचार पूजन सायंकाल में करें। २१ लड्डुओं का भोग लगाएं। इसमें से ५ गणपति के सम्मुख भेंट कर शेष ब्राह्मणों और भक्तों में बांट दें। साथ में दक्षिणा भी दे दें। 

और बोलें-

श्रीविप्राय नमस्तुभ्यं साक्षादेवस्वरूपिणे। 

गणेशप्रीतये तुभ्यं मोदकान वे ददाम्यहम् ॥

अर्थात : हे श्री विप्र, मैं आपको, जो देवता के रूप में हैं, प्रणाम करता हूं।

भगवान गणेश आपको प्रसन्न करने के लिए, मैं आपको कुछ मोदक अर्पित कर रहा हूं।

रात में चंद्रोदय होने पर यथाविधि चंद्रमा का पूजन कर क्षीरसागर आदि मंत्रों से अर्घ्यदान करें। तत्पश्चात् गणपति को अर्घ्य देते हुए नमस्कार करें और कहें कि हे देव! सब संकटों का हरण करें तथा मेरे अर्घ्यदान को स्वीकार करें।

अब आप फूल और दक्षिणा समेत पांच मोदकों को स्वीकारें। वस्त्र से ढका पूजित कलश, दक्षिणा और गणेशजी की प्रतिमा आचार्य को समर्पित कर दें। फिर भोजन ग्रहण करें। 

पौराणिक कथा : इस कथा का उल्लेख श्रीस्कंदपुराण में आया है- भगवान् श्रीकृष्ण से जब अर्जुन ने अपना खोया हुआ राजपाट पुनः प्राप्त करने का उपाय पूछा, तो उन्होंने संकष्टचतुर्थी व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि इस व्रत की बड़ी अमित महिमा है।

इसके प्रभाव से राजा नल ने अपना खोया राज्य प्राप्त कर लिया था। तुम्हें भी इस व्रत के करने से अपना राज्य फिर से मिल जाएगा।

सतयुग में नल नामक एक राजा था, जिसकी दमयन्ती नामक रूपवती पत्नी थी। जब राजा नल पर विकट समय आया तो उसके घर को आग ने जलाकर राख कर दिया। चोर उसके घोड़े, हाथी, खजाने का धन चुरा कर ले गए, बचा धन राजा जुए में हार गया, मंत्रीगण धोखा दे गए।

अंत में उसे अपनी पत्नी के साथ वन में भटकना पड़ा, जहां उसे भारी कष्ट सहने पड़े। कलियुग के प्रकोप से उसे अपनी सती-साध्वी पत्नी से भी अलग होना पड़ा। एक समय ऐसा भी जब उन्हें अलग-अलग जगह नौकरी भी करनी पड़ी।

अनेक विपत्तियों से ग्रस्त होकर येन-केन-प्रकारेण वह अपने दिन गुजारने लगे। एक दिन दमयन्ती शरभंग ऋषि की कुटिया में पहुंच कर प्रणाम करके अपना दुखड़ा सुनाने लगी- 'हे मुनिश्रेष्ठ! मैं समय के कुचक्र के कारण अपने पति और पुत्र से अलग हो गई हूं। मेरे पति का छिना हुआ राज्य, पति और पुत्र की प्राप्ति फिर से केसे हो, उसका उपाय बतलाने की कृपा करें।"

महामुनि शरभंग ने कहा-'हे दमयन्ती ! मैं तुम्हें एक ऐसा व्रत बतलाता हूं, जिसके करने से स संकट दूर होकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

संकष्ट चतुर्थी' के नाम से जाना जाने वाले इस व्रत को भाद्रपद मास की कृष्णचतुर्थी के दिन जो कोई भी विधिपूर्वक गणेशजी का पूजन करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत के करने से तुम्हें निश्चित रूप से अपने इच्छित मनोरथ प्राप्त होंगे।

रानी दमयन्ती ने भाद्रपद मास की कृष्णचतुर्थी से इस व्रत को आरंभ करके लगातार सात माह तक गणेश-पूजन किया, तो उसे अपना पति, पुत्र और खोया हुआ राज्य फिर से प्राप्त हो गया। तभी से इस व्रत की परिपाटी चली जा रही है।

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