उत्तराखण्ड में 'फूलदेई' के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता:धर्मेंद्र बसेड़ा

उत्तराखण्ड में 'फूलदेई' के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता:धर्मेंद्र बसेड़ा

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उत्तराखण्ड में 'फूलदेई' के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता:धर्मेंद्र बसेड़ा
उत्तराखण्ड में 'फूलदेई' के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता:धर्मेंद्र बसेड़ा

बाजपुर : उत्तराखंड में चैत मास के प्रथम तिथि को फूलदेई त्यौहार हर्षोउल्लास से मनाया जाता है।घर घर जा कर बच्चे फूलों से घरों के द्वार का पूजन कर,घर की सलामती के लिए प्राथना करते हैं।तराई में बसे कुमाऊनी समुदाय के लोगों ने इसे हर्ष उल्लास के साथ मनाया।

ग्राम हरसान कपकोट में छोटे छोटे बच्चों ने घर घर जाकर लोगों के दहलीज पर फूल डाले और बदले में ग्राम वासियों ने उन्हे गुड चावल और रुपये देकर बिदा किया।सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली से प्रशिक्षित शिक्षक व सहजयोग

उत्तराखण्ड पूर्व स्टेट कोऑर्डिनेटर धर्मेन्द्र बसेड़ा ने कहा कि त्योहार हमारी संस्कृति के प्रतीक है फूलदेई भी प्रकृति से जुड़ा त्योहार है।यह त्यौहार चैत्र मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है।इस संक्रांति को उत्तराखण्ड में 'फूलदेई' के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता है।

जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंली, बुरांस, आडू, खुबानी व पुलम आदि के फूलों को चुनकर इन्हें चावल के साथ हर घर की देहरी पर लोकगीतों को गाते हुये जाते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं।

फूल देई, छम्मा देई,देणी द्वार, भर भकार,ये देली स बारम्बार नमस्कार,फूले द्वार फूल देई-छ्म्मा देई।'घर की महिलायें उन्हें चावल गुड़ रुपया देकर विदा करती है साम को इसका प्रसाद बनाकर वितरित किया जाता है।मौके पर पवानी, खुशी, आकांक्षा, मोनिका, इशु, अभी, वेषणवी, आराध्या, वरसाना, दीपा, मंजु, नीशु,आदि थे। 

बाजपुर संवादाता आशु अहमद की रिपोर्ट

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